“अरे, तू आज भी जाएगा क्या?”
“बिजली विभाग फोन करना पड़ेगा। मैं फोन लगाता हूं। कुछ कदम पर पुलिस चौकी है, जाते-जाते उन्हें भी बता दूंगा। वो आकर हटवा देंगे।”

बहुत देर तक आवाज लगाने के बाद भी जब कोई नहीं निकला तो भोला मायूस होकर लौटने लगा।
तभी एक महिला गीला तौलिया बालों में लपेटे भागती हुई बाहर आयी।
“चालीस,
चालीस में देना है, तो दो, नहीं तो रहने दो। मजबूरी है, इसलिए रोका तुम्हें, नहीं तो मैं तुम ठेले वालों की लाई चीजों पर विश्वास नहीं करती।”

तभी सड़क पर आ रही कुछ आवाजों से उसका ध्यान टूटा।
एक पुलिस वाला और एक हवलदार उस टूटे हुए तार के पास खड़े होकर उसे देख रहे थे।
“अरे ठेले वाले, रुक जरा।”
अच्छा हुआ आप आ गए।
ये तार मेरे सामने ही टूटा बस कोई हादसा ना हुआ आप यही समझ लो।”
“हमारे साहब के रहते हादसा नहीं होता यहां।”
हवलदार अपनी हथेली पर सुर्ती रगड़ते हुए भोला पर रोब झाड़ रहा था। भोला बिना कुछ जवाब दिए चुपचाप खड़ा हो गया।
“सुन, तू एक काम कर, इस बिजली के तार के चारों ओर ईंट और पत्थर रख दें ताकि आने जाने वाले को पता चले कि यहां तार गिरा हुआ है।”
हवलदार ने भोला को डंडा दिखाते हुए हड़काया।
“साहब बिजली तो नहीं है, इसमें?”
“साहब, बहुत देर हो रही है।”
“चुप, साहब को मना करता है?”
भोला ने हवलदार के इशारे पर बेमन से ईंट उठाई। बरसात में गीली हुई काई लगी ईंट जैसे ही कीचड़ के संपर्क में आई, उस कीचड़ में डूबे तार ने भोला को चट चट की आवाज के साथ किसी चुंबक की तरह खुद से चिपका लिया। तार में दौड़ती बिजली की तरंगे उसके शरीर का खून तेजी से सुखा रही थीं और पुलिस वाले ये सब स्तब्ध हो कर देख रहे थे। उन्हें कुछ समझ आता और वो कुछ फुर्ती दिखाते, तब तक बिजली की तारे भोला के शरीर को झुलसा चुकी थीं।
“साहब, मर गया, लगता है?”
“आप मुझे ईट रखने के लिए कह रहे थे। आज तो भगवान ने बचा लिया। मेरे छोटे-छोटे बच्चे अनाथ हो जाते।”
“तुमने बिजली कटवायी नहीं थी क्या?
“फोन तो किया था साहब, नींद में लग रहा था, फोन सुनकर सो गया होगा।”
“तुम यहीं रुको, मैं बिजली कटवा कर आता हूं। कोई पूछे तो बोलना तार की चपेट में आ गया।”
थोड़ी देर बाद हवलदार के फोन पर घंटी बजी…..
“जी साहब, ठीक है।