शाहिद की चिट्ठी : आज स्वतंत्रता दिवस के दिन विवेक एक पेपर के टुकड़े को सीने से लगाए खिड़की पर खड़ा बारिश को देख रहा है। हवा के एक छोटे से झोंके से बारिश, बौछार बनकर उसके चेहरे को तर कर रही है। विवेक अपनी बंद आंखों से उन बौछारों में अपने शहीद पिता के मुस्कुराते चेहरे को महसूस कर रहा है। पिता के आलिंगन को महसूस कराती वो बौछारें उसे अतीत की यादों में ले आयीं हैं।
जब तिरंगे में लिपटा उसके पिता का शव सेना के जवानों के कंधों पर आया था। उस समय के रुदन और चीत्कार के माहौल में, वो नन्हा सा बच्चा डरकर कोनों में छुप रहा था। किसी से उसे पता चल गया था कि अब उसके पापा कभी लौट कर नहीं आएंगे। गुस्से में चिल्लाता वो छोटा सा विवेक इसी कमरे की अलमारी में छुप कर बैठा था।
पूरी रात विवेक उस अलमारी में सोता रहा। किसी ने ढूंढा भी नहीं क्योंकि उसके छुपने की वो जगह सिर्फ उसके पापा को पता थी, जो आज खुद ही ऐसी दुनिया में जा छुपे थे, जहां से उन्हें ढूंढ कर लाना किसी के लिए संभव ही नहीं था।
अगली सुबह शव यात्रा के निकलने के वक्त विवेक को ढूंढा गया क्योंकि पिता को मुखाग्नि उसे ही देनी थी। घंटों की मेहनत के बाद वो किसी को अलमारी में सोता हुआ मिला। उस नन्हें से अबोध बच्चे ने जब अपने पिता को मुखाग्नि देकर संसार के सभी बंधनों से मुक्त किया तो उस दृश्य को देखकर वहां खड़े लोग ही नहीं, आसमान भी रोया था। बारिश की वो बूंदें उस मासूम से बच्चे के झुलस रहे मन को शीतलता देने की, असफल कोशिश कर रही थीं।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। एक शहीद की शहादत को उनके परिवार वालों को छोड़कर बाकी लोग लगभग भूल चुके थे। उनके जाने के बाद किये गये बड़े बड़े अधूरे वादे भी अब भुलाये जा चुके थे। प्रशासन उनके नाम पर एक प्रतिमा बनवा कर वाहवाही लूट रहा था।
विवेक अपने 15वें जन्मदिन पर कमरे में गुमसुम बैठा किताब के पन्ने पलट रहा था। विवेक की मां कमरे के बाहर एक पार्सल लेकर खड़ी थी। विवेक उन्हें देख कर मुस्कुराया और उन्हें अंदर आने को कहा।
अंदर आते ही मां ने विवेक से पूछा, “मेरा जीनियस बेटा क्या कर रहा है?”
विवेक ने बड़ी ईमानदारी से जवाब दिया, “पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं।”
“आज के दिन तुम इस कमरे से बाहर नहीं आते, विवेक। मैंने सोचा कि मैं ही आ जाऊं।” विवेक की मां बोलीं।
मां की बात सुनते ही विवेक मां के कंधे पर सर रखकर बोला, “पापा की बहुत याद आती है, मां। क्या सचमुच वो फिर से नहीं आ सकते?”
विवेक के उस बचकाने सवाल में छिपे दर्द को महसूस करती उसकी मां बोलीं, आ सकते हैं। और उन्होंने वो पार्सल उसके सामने रख दिया।
विवेक कुछ समझ नहीं पा रहा था। उसकी व्याकुलता को देखते हुए उसकी मां बोलीं, “तुम्हारे पापा के शहीद हो जाने के एक हफ़्ते के बाद ही ये पार्सल घर आया था। साथ में मेरे लिए एक शाहिद की चिट्ठी थी। जिसमें उन्होंने ये पार्सल तुम्हें आज के दिन देने के लिए कहा था। बहुत दिनों से मैंने इसे संभाल कर रखा था। आज तुम्हारी अमानत तुम्हें दे रही हूं।”
ये कहकर उसकी मां कमरे से बाहर चली गईं।
उस पार्सल को पकड़कर विवेक ऐसे रोने लगा जैसे उसके पापा ही सामने आकर खड़े हो गए हो। थोड़ी देर बाद उसने अपने आप को संभाला और कांपते हाथों से उस पार्सल को खोला।
उस छोटे से पार्सल में पिता ने उसकी जिंदगी रख दी थी। उसमें एक छोटा सा लिफ़ाफ़ा था और एक प्लास्टिक के खिलौने वाली बंदूक थी। जो छोटे से विवेक ने अपने पापा को दुश्मनों से लड़ने के लिए दी थी। विवेक ने अपने आंसू पोंछे और उस लिफ़ाफ़े को खोला। उस लिफ़ाफ़े में उसके सहीद की चिट्ठी थी।

विवेक ने उस शहीद की चिट्ठी को पढ़कर अपने सीने से लगा लिया। मानो अपने पिता को वचन दे रहा हो कि उनके हर सपने को पूरा करेगा।
वो दिन था और आज का दिन है, विवेक अपनी हर सफलता पर उस शहीद की चिट्ठी को सीने से लगाकर, अपने पिता को आंखें बंद कर अपनी विजय गाथा का संदेश देता है।
आज भी शायद वो यही कर रहा है। उसकी आत्मविश्वास से भरी हुई आँखे अपने पिता को महसूस करते फिर से नम हो रहीं हैं।
तभी दरवाजे पर खड़ी उसकी मां ने दरवाजा खटखटाया। विवेक ने मुस्कुराकर अंदर आने को कहा। उसकी मां ‘आई पी एस विवेक शर्मा’ के नाम की वर्दी लेकर खड़ी हैं और विवेक से कह रहीं हैं, “जल्दी से अपनी वर्दी पहन लो। आज तुम्हारी जॉइनिंग है और तुम्हें झंडा रोहण के लिए भी समय से पहुँचना है। आज स्वतंत्रता दिवस है, हमारे जैसे करोड़ों देशवासियों के लिए एक त्यौहार, एक उत्सव। आज के दिन देर से पहुँचना एक देशभक्त के लिए अपराध है।”
विवेक बड़े गर्व से अपनी वर्दी पहन कर तैयार हो रहा है। उस वर्दी को पहन कर उसे ऐसा महसूस हो रहा है मानों उसके पिता की रूह उसे अपने आगोश में भरकर शतायु होने का आशीर्वाद दे रही हो।
विवेक के मुंह से बस इतना निकला,”थैंक यू पापा। स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।”

It’s very inspiring story thanks a lot sir
Heartly independence day
Jai Hind sir
Thanks Bindra ji. I really appreciated you comments. We should always respect who serve for us.
You are great … PRAGYA JI……..Really it’s true story of each Indian army soldier family, Salute to our Indian Army…. Jai hind ….
धन्यवाद भइया, जय हिंद।