सारिका दरवाजे को बार-बार खोलकर बाहर झांक रही थी, जब कोई नहीं दिखता तो फोन लगाती और जब फोन भी नहीं उठा तो गुस्से में बड़बड़ाने लगती, “अरे! फोन तो उठा सकते हो। पता नहीं क्या हुआ? लोन पास हुआ या नहीं? तभी दरवाजे पर घंटी बजी। सारिका ने तेजी से दरवाजा खोला। उसके पति सुभाष थे। उन्हें देखते ही सारिका ने सवालों की झड़ी लगा दी।
“क्या हुआ?”
“लोन पास हुआ कि नहीं?”
“तुम मेरा फोन क्यों नहीं उठा रहे थे?”
अब कुछ बोलोगे भी…
“अंदर आ जाऊं मैं?” सुभाष बोले।
आज काम नहीं हो पाया। थोड़ा इंतजार इंतजार कर लो। तुम्हारी यह इच्छा जल्दी पूरी करूंगा मैं। जूते उतारते हुए सुभाष ने सारिका से कहा।
इतना सुनते ही सारिका सुभाष से गुस्से में बोली, “यही उम्मीद थी तुमसे, मैं यहां बैठी सपने बुन रही थी कि आज लोन पास हो जाएगा और संडे तक शोरूम में चलकर नई कार ले लेंगे लेकिन तुम्हें तो मेरे सपनों को रौंदने में ही सबसे बड़ा ‘सुख’ मिलता है। मैं थोड़ा इंतजार करूं और तुम मेरे लिए कार खरीद लाओगे।
बोल तो ऐसे रहे हो जैसे मेरी हर इच्छा चुटकी बजाकर पूरी कर देते हो। इंतजार करने के अलावा किया क्या है मैंने? आज तक इंतजार ही तो करवाया है। कहने को सरकारी स्कूल में टीचर हो लेकिन तुम्हारे ही स्कूल के बाकि लोगों को देखो, सब कुछ बना लिया और हम, जहां थे वहीं हैं।
पहले सास-ससुर थे इसलिए इंतजार किया। फिर आशु की पढ़ाई थी। अब तो आशु का बी.टेक. भी पूरा हो गया। कुछ दिनों बाद वो भी हॉस्टल छोड़ कर अपनी नौकरी करने चला जाएगा । शिखा अभी दसवीं में है। अभी ले लेते तो ठीक था। फिर बोलोगे अभी शिखा की पढ़ाई है। फिर उसकी शादी करनी है। थोड़ा और इंतजार कर लो।”
“जाने कब मेरी जिंदगी में ‘सुख’ आएगा?”
सुख तो नहीं तुम्हारे लिए जलेबी लेकर आया हूँ। गरम गरम छन रही थी इसलिए थोड़ा टाइम लग गया। तुम्हारा फोन आ रहा था, तो मैं रास्ते में ही था, इसलिए नहीं उठाया। जल्दी से निकालो खाते हैं। शिखा को भी बुलाओ- सुभाष बोले।
“शिखा नहीं है। अपनी दोस्त अनामिका के यहां गई है। दोनों साथ में पढ़ेंगे, कल टेस्ट है उसका। शाम तक आएगी” सारिका ने बताया।
“एक काम करो, जल्दी से तैयार हो जाओ। कहीं जाना है हमें।” सुभाष ने कहा।
सारिका बोली, “कहां जाना है?”
“सुख से मिलने” सुभाष जलेबी खाते हुए बोले।
“मजाक सुनने के मूड में नहीं हूं मैं।” सारिका गुस्से में बोली।
“अरे! मजाक नहीं कर रहा हूं मैं, मेरे साथ सुखविंदर है। हमेशा हम साथ-साथ रहते हैं। उसी से मिलाने चलना है। उसे मैं सुख ही बोलता हूं। शिखा के वापस आते तक आ जाएंगे।” सुभाष ने बताया।
थोड़ी देर में दोनों तैयार होकर बाहर निकले। बाहर खड़ी कार को देखकर सरिता बोली, “मैं इस खटारा गाड़ी से नहीं जाऊंगी। एक तो पहले से सेकंड हैंड खटारा खरीदी और 5 साल से चला-चला कर और बुरा हाल कर दिया। अब तो मोहल्ले वाले भी हंसते हैं हम पर।” सारिका धीरे-धीरे फुसफुसा रही थी।
“आज बैठ जाओ, बहुत जल्द तुम्हारे लिए ब्रांड न्यू कार ले आऊंगा।” सुभाष ने गेट खोलते हुए कहा और सरिता को बैठने का इशारा किया।
सुभाष रास्ते में तरह-तरह की बातें बता रहे थे और सरिता उनकी हर बात अनसुनी कर रही थी। आगे गाड़ियों की कतार देखकर सुभाष समझ गए थे कि चौराहे पर लाल बत्ती जल गई है। सब की गाड़ियां धीरे-धीरे रेंगते हुए खड़ी हो गई थी। तभी उनकी गाड़ी के सामने वाली गाड़ी से किसी ने ब्रेड का पैकेट सड़क पर फेंका।



यह देखकर सारिका बोली, “कितने गंदे लोग हैं? सड़क पर कूड़ा फेंक दिया।”
उस पैकेट की नीचे गिरते ही एक भिखारन छोटे से बच्चे को एक तरफ दबाए उस पैकेट को उठाने दौड़ी और एक कोने में बैठ कर अपनी बच्ची को सूखी ब्रेड खिलाने लगी। सारिका उस भिखारन को देखकर द्रवित हो रही थी। सुभाष मुस्कुरा कर बोले, “ये सूखी ब्रेड का पैकेट हमारे लिए कूड़ा है लेकिन जानती हो इस भिखारन के लिए क्या है?”



सारिका ने कहा, “क्या है?”
“सुख” सुभाष ने आगे कहा,
“सुख इस बात का कि आज उसका बच्चा भूखा नहीं रहेगा। इसकी अंतड़ियां भी आज उस सुख को महसूस करेंगी। खुद भूखी होने के बाद भी वो अपने बच्चे का पेट भर रही है। ये उसका सुख है।”
तभी हरी बत्ती जलते सभी गाड़ियां फिर से चलने लगी। कुछ दूर जाने के बाद सुभाष बोले, “तुम गाड़ी में बैठो, मैं अभी आया।” गाड़ी एक कंस्ट्रक्शन साइट के पास रुकी थी। सारिका ने देखा एक गर्भवती औरत अपने सर से ईट रखने के लिए बंधे हुए बीड़े को खोल रही थी। तभी एक आदमी आया। उसने उसके सर से बीड़ा उतारा और ईंटों वाली लाल धूल को झाड़ने में उसकी मदद करने लगा।



अब तक सुभाष गाड़ी में आकर बैठ गए और बोले, “क्या देख रही हो?
सारिका बोली, “बेचारी इस हालत में भी काम कर रही है।”
सुभाष ने मुस्कुराकर कहा, “उसके पति ने जिस स्नेह से उसकी मदद की, उस ‘सुख’ के आगे वो अपनी बेचारगी भूल गई। उसके चेहरे की मुस्कुराहट यह बता रही है।”
सुभाष ने मुस्कुराते हुए गाड़ी आगे बढ़ा दी। कुछ आगे जाने के बाद सुभाष ने कहा, “टायर में हवा कम लग रही है, फुल करवा लेता हूं।”
उनकी बात सुनकर सारिका ने मुंह टेंढ़ा किया और आगे देखने लगी। टायर वाली दुकान के सामने एक बच्चों का अस्पताल था। जिसके बाहर एक दंपत्ति गोद में छोटी सी बच्ची को लिए बाहर निकल रहे थे। बच्ची अपनी मां की गोद में रो रही थी और उसकी मां उसके हाथ में रूई रगड़ते अपने आंसू पोंछ रही थी। नन्हीं बच्ची की मां उसे गाड़ी में लेकर बैठ गई और उसके पिता उसके लिए रोड पर खड़े गुब्बारे वाले से गुब्बारे खरीदने लगे।
सुभाष ने गाड़ी स्टार्ट की और कहा, “देखो सारिका, कैसे ‘सुख’ उस नन्हीं बच्ची का दर्द बनकर उसकी मां की आंखों से बह रहा है।”
तब तक वह बच्ची और जोर से रोने लगी और उसके पिता गुब्बारे वाले से गुब्बारे लेकर बचे हुए पैसे बिना लिए ही गाड़ी में बैठ गए।
सुभाष ने फिर कहा, “अब इस गुब्बारे वाले को देखो बीस रुपये ज्यादा पाकर कितना खुश है? इन बढ़े हुए बीस रूपये का ‘सुख’ तुम और मैं नहीं समझ सकते।



सुभाष ने गाड़ी आगे बढ़ा दी और सारिका विचारमग्न बाहर की ओर देख रही थी। कुछ दूर आगे जाकर सुभाष में गाड़ी में ब्रेक मारी। एक वृद्ध दंपत्ति जिनकी कमर झुक चुकी थी, डंडा लेकर दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़े, सड़क पार कर रहे थे। उन्हें देखकर सबने गाड़ी रोक दी।
सारिका बोली, “अब क्या हुआ?”
उसकी नजर जैसे ही उन दंपत्ति पर पड़ी वो बोली, “अच्छा, सुख सड़क पार कर रहा है।”
सुभाष और सारिका दोनों हंस पड़े और सुभाष ने आगे जाकर गाड़ी किनारे खड़ी कर दी और कहा, “घर चलें?”
सारिका बोली, “लेकिन हम तो आप के दोस्त के यहां जा रहे थे। क्या नाम था? सुख… सुखविं..दर”
सारिका को बोलते-बोलते ही बात समझ में आने लगी और उसकी मुस्कुराहट को देखकर सुभाष बोले, “आइसक्रीम खाओगी?” सारिका ने हां बोला। दोनों गाड़ी से उतर कर सुभाष के ‘सुख’ के साथ आइसक्रीम खाने चले गए।
कभी आपकी मुलाकात हुई ऐसे ‘सुख’ से???
written by : प्रज्ञा अखिलेश
( आज की कहानी पढिए और अपने जीवन के ऐसे सुख हमसे भी साझा करिए।)