
क्या सिर्फ़ दहेज़ लेने वाले ही जिम्मेदार हैं?
क्या सिर्फ़ दहेज़ लेने वाले ही जिम्मेदार हैं??
आज का ब्लॉग सिर्फ कहानी नहीं बल्कि एक प्रश्न है। जिसका उत्तर सीमा को अभी भी नहीं मिला है।
सीमा एक प्रतिभाशाली छात्रा और एक शिक्षक की बेटी है। उसकी पढ़ाई पर उसके पिता ने लाखों रुपए खर्च किए। सीमा ने भी उसपर किए गए खर्च को व्यर्थ नहीं जाने दिया। एक बड़े प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज से टॉपर सीमा का कैंपस सेलेक्शन हुआ और एक आकर्षक पैकेज की नौकरी मिल गई।
कुछ दिन नौकरी करने के बाद सीमा ने अपने पिता से सिविल की तैयारी करने की इच्छा जाहिर की। सीमा की शादी का मन बना रहे उसके पिता ने उसका भरपूर साथ दिया। शादी का इरादा कुछ दिनों के लिए त्यागकर बेटी के निर्णय में साथ देना उन्होंने उचित समझा।
कई वर्षों के अथक प्रयास के बाद भी सीमा को सफलता नहीं मिल रही थी। इधर उसके पिता पर लड़की की शादी ना करवा पाने के लिए, पड़ने वाले पारिवारिक और सामाजिक दबाव, उनकी हर परिस्थिति में बेटी का साथ देने के प्रण को कमजोर बना रहे थे।


सीमा धीरे-धीरे 30 वर्ष पूरे करने वाली थी। पिताजी ने सोचा, “मैं लड़का ढूंढना शुरू करता हूं। क्या पता शादी तय होते होते सीमा का सेलेक्शन भी हो जाए।”
सीमा अधिकारी बनी नहीं थी लेकिन इतने वर्षों तक किताबों में अपनी आहुति देने के बाद उसका स्थान किसी अधिकारी से कम भी नहीं था। तो जाहिर था, इतनी योग्य बेटी की शादी के लिए उसी के बराबर ‘योग्य वर’ ढूंढना एक बड़ा लक्ष्य था।एक बेटी का पिता जब अपनी बेटी का बायोडाटा लेकर इस बाजार में उतरता है। तब उसे ‘योग्य वर’ का प्राइस टैग पता चलता है। जो अक्सर उसकी औकात के बाहर होता है। किंतु अपनी औकात को जानने के बावजूद, वो पिता उस योग्य वर की बोली लगाता जरूर है।यही सीमा के पिता ने भी किया। उन्होंने सोचा, “मेरे पास सेविंग्स कम नहीं है, बहुत पैसा है। लेकिन फिर भी कम पड़ा तो गांव वाला घर गिरवी रख दूंगा। एक ही तो बेटी है, कोई कमी नहीं छोडूंगा।” सीमा के पिता की योग्य वर ढूंढने की तलाश एक लोअर सबार्डिनेट के मिलने के बाद पूरी हुई। रिश्ता लगभग तय था। दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे। बस दहेज़ तय होना बाकी था। सही कहें, तो खरीद फरोख्त अभी बाकी थी।

लड़के के पिता सीमा के पिता की असली हैसियत का आंकलन कर चुके थे। इसलिए उनकी लगाई पहली बोली ने ही सीमा के पिता की सारी योजना को ध्वस्त कर दिया। किंतु सीमा की बढ़ती उम्र को देखते हुए, किसी भी हाल में वो इस रिश्ते को हाथ से जाने नहीं देना चाह रहे थे। उन्होंने हर मांग स्वीकार कर ली और रिश्ता भी तय कर लिया। अब उन्होंने अगले 5 वर्षों तक खुद को लोन की किस्तें भरने के लिए तैयार कर लिया था। अब आख़िर में आप सभी से वो सवाल जो सीमा जैसी हर लड़की पूछना चाहती है, “क्या सिर्फ दहेज़ लेने वाला ही जिम्मेदार है?”
यदि हर बेटी का पिता देने पर थोड़ा अंकुश लगा ले तो लेने वाले का मुंह क्या सुरसा की तरह ही खुला रहेगा?
कुछ तो अंकुश लगेगा ही।
आप सभी बुद्धिजीवियों से इस प्रश्न के उत्तर का इंतजार रहेगा। दीजिएगा जरूर और हो सके तो दूसरों से भी सीमा के प्रश्न का उत्तर मांगिये। क्योंकि उत्तर मिलना बहुत आवश्यक है। सवाल एक बेटी का जो है……
प्रज्ञा अखिलेश
आप सभी बुद्धिजीवियों से इस प्रश्न के उत्तर का इंतजार रहेगा। दीजिएगा जरूर और हो सके तो दूसरों से भी सीमा के प्रश्न का उत्तर मांगिये। क्योंकि उत्तर मिलना बहुत आवश्यक है। सवाल एक बेटी का जो है!
makes you UNSOCIAL"

बिल्कुल सही प्रश्न किया है लोगों से क्योंकि हमेशा ताली दो हाथो से बजती है| प्रश्न नहीं पूछने के कारण ही आज लड़के के पिता पूछते हैं कि आप इत्ता दे पायेंगे अगर हाँ तो रिसता मंजूर नहीं तो नहीं l
I appreciate your question and thanks for asking to the society by this blog