अब आया दिमाग़ ठिकाने पर ?
नाश्ता करने में अगर थोड़ी भी देर हो जाय सरदर्द के साथ उल्टियाँ भी शुरू हो जातीं थीं और उसकी हालत पर दवाई देने और हाल पूछने के बजाय उसका पति कहता था, ‘अब आया दिमाग ठिकाने पर? जब पता है कि खाली पेट दिक्कत होती है तो समय पर खाती क्यों नहीं हो??’
वो उसकी बातें सुनकर हर बार तिलमिला जाती लेकिन उसे पता था कि बहस करने का कोई मतलब नहीं क्योंकि इतनी कमज़ोरी के कारण उसमें ना खड़े होने का दम है और ना ही बोलने की उसमें हिम्मत बची है।

एकदिन उसका सरदर्द बहुत बढ़ गया था। उस दिन तो डिस्प्रिन भी असर नहीं कर रही थी। हार कर उसने पति को फोन करके घर बुलाया। अस्पताल में कई जांच के बाद पता चला कि उसके दिमाग में कैंसर है। बीमारी इतनी बढ़ चुकी थी कि अब उसका ठीक हो पाना संभव नहीं था।वो लगभग एक साल से सरदर्द होने पर सिर्फ डिस्प्रिन खा लेती थी क्योंकि किसी भी काम में वो पीछे नहीं रहना चाहती थी, कई-कई बार तो वो ड्रामेबाज तक करार दे दी गयी थी और आये दिन के सरदर्द को कह दिया जाता, “गैस सर पर चढ़ गयी होगी। चूरन खा लो।”
आज अस्पताल से आने के बाद उसे अपने दो छोटे बच्चे दिख रहे थे। चौथी और पाँचवी में पढ़ने वाले दोनों बच्चों को उसने जबर्दस्ती बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया और मानसिक रूप से हमेशा के लिए एक दूसरे का सहारा बनने के लिए तैयार कर दिया।उसका पति अब किसी के छोटे से दर्द को भी कभी नजरअंदाज नहीं करता है।
लेकिन उसके साथ तो वही हुआ जो नहीं होना था। उस रात जब वो सोयी तो फिर कभी नहीं उठी।
अब दीवार पर टंगी उसकी फोटो को उसका पति खड़ा निहारता रहता है।
मानो तस्वीर में मुस्कुराती वो पूछ रही हो, “अब आया दिमाग ठिकाने पर??”
दोस्तों, इस छोटे से ब्लॉग में मैंने बिना किसी का नाम लिखे आपका ध्यान एक गंभीर समस्या की ओर इंगित करने का प्रयास किया है। क्योंकि कोई एक नाम होता तो लिखती भी। गाँव हो या शहर यहाँ तो हर तीसरी औरत मुझे इस बीमारी की शिकार दिखी और ये बीमारी है, पूरे घर का ध्यान रखते हुए अपने साथ शुरू हो रही हर शारीरिक और मानसिक समस्या को नजरअंदाज करना। जिसका भयावह परिणाम कुछ महीनों में हमारे सामने आ जाता है। जिस छोटी सी समस्या को हम समय रहते बढ़ने से रोक सकते हैं वो छोटी सी समस्या एक दिन ऐसी गंभीर और जानलेवा बीमारी बन जाती है कि हम नोटों की गड्डियां लेकर भी कुछ नहीं कर सकते और हमारी आँखो के सामने हमारा अपना हमारी खुशियों को भी अपने साथ बटोर ले जाता है। और हाँ……उनकी तकलीफ़ तो हम समझ ही नहीं सकते जो पैसों के अभाव में अपनी आँख के सामने अपनी गृहस्थी उजड़ते देखने के लिए मजबूर होते हैं। इसलिए निवेदन यही कि अपना ध्यान रखिए। आप स्वस्थ रहेंगी तो आपके साथ आपका पूरा परिवार भी उर्जावान रहेगा। अन्यथा ऐसी लापरवाही का क्या हश्र होता है ये तो मैंने ब्लॉग में लिखा ही है। याद रखिए यदि आप स्वयं के लिए संवेदनशील नहीं है तो दूसरों से संवेदना की उम्मीद करना व्यर्थ है।
Great 👍 heart touching story…. salute to Pragya ji .. To right such great stories…..
शुक्रिया भइया 🙏
mai aapki statement se sehmat hu mam.
धन्यवाद 🙏🙂