जवानी में होश भी था और जोश भी लेकिन जैसे जैसे उम्र ढलती गई परिवार और समाज ने भी साथ छोड़ दिया । अंधी आंखों के होने के बावजूद लेकिन एक चीज जो हमेशा साथ रही वह हैं बुलुंद हौसले और भगवन के ऊपर भरोसा।
बुढ़ापा आया तो पति ने भी छोड़ा साथ।।।
आज सच्ची कहानी है एक ऐसी महिला की, जो कि आंखों से अंधी है और हमेशा से ही मुश्किलों और परेशानियों से घिरी रहती है लेकिन जैसे की कहते हैं ना जिसका कोई नहीं उसका भगवान होता है। ऐसा ही एक मसीहा इस अंधी महिला की जिंदगी में भी आया। उस मसीहा ने अंधी आंखों वाली बुजुर्ग महिला की कुछ परेशानियों को दूर करने की कोशिश की।
महिला की जवानी तो जैसे तैसे अपने पति के साथ निकल गई। लेकिन बुढ़ापे में आते आते पति ने भी उसका साथ छोड़ दिया। उस अंधी आंखों का कोई भी सहारा नहीं रहा। वह अकेली एक छोटे से घर में रह कर मुश्किल भरी जिंदगी काट रही है। उसे हमेशा इसी बात की चिंता रहती है की उसके बुढ़ापे में कौन उसका साथ देगा। कौन उसकी लाठी बनकर उसके साथ साथ चलेगा ?



अंधी आंखों वाली महिला की बुढ़ापे की लाठी बना एक विदेशी भारतीय
इन्हीं मुश्किलों को दूर करने के लिए अमेरिका में रहने वाले एक भारतीय युवक ने उस महिला का हाथ थामा और उसकी मुश्किलों को दूर करने का फैसला किया। वह व्यक्ति उस अंधी आंखों वाली महिला की सभी मुसीबतों का हल तो नहीं निकाल सकता था लेकिन कुछ मुश्किलों को कुछ हद तक कम जरूर कर सकता है। ऐसे में वह हर महीने उस अंधी महिला को कुछ पैसे देकर दवाई ,जड़ी-बूटी , खानपान की सुविधा देता है। जिससे वह महिला अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की कुछ मुलभूत जरूरतों को पूरा कर पाने में सक्ष्म है। उसे किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती। अब उसे तीन टाईम के खाने का डर नहीं सताता ।
अमेरिका में रहने वाला वह युवक उसकी जिंदगी में किसी मसीहा से कम नहीं हैं। आज वह अंधी आंखों के साथ भी दुनिया देख पाती है। वहीं वो व्यक्ति उसकी अंधी आंखों का सहारा बन गया है।
अंधी आंखों से भी देख पाना हुआ आसान
70 साल की उस अंधी बुजुर्ग महिला का कहना है कि उसके जीवन में कई मुश्किलें आई। लेकिन जब तक उसका पति उसके साथ रहा तब तक वह हर मुश्किल का सामना आसानी से करती रही। वह हर रोज सुकून की नींद सोती थी। बच्चों का सुख तो उसके जीवन में पहले से ही नहीं था। लेकिन पति के दूर जाते ही उसकी मुश्किलें और बढ़ गई। ऐसे में अमेरिका का रहने वाला वह आदमी उसकी बुढ़ापे की लाठी बना और उस ने उसे जीवन जीने का सहारा दिया। उसके जीवन में आने से अंधी आंखों को जैसे दिखना शुरु हो गया।



बुलुंद हौसलों को सलाम।।
जहां एक ओर वह महीला जीवन जीने की आस ही छोड़ चुकी थी । वहीं अब उसका जीवन जीने का हौसला बढ़ा है । काश हर वयक्ति जो अपने कमाये हुए पैसों में से कुछ हिस्सा ऐसे ही गरीब या विकलांग लोगों की सेवा में लगा दें तो भगवान् को इस धरती पर अवतार लेने की जरूररत ही नहीं पड़ेगी। आज हम एक मैक डॉनल्ड्स से बर्गर लेने के लिए फिजूल खरच कर देते हैं पर वहीँ अगर हम किसी गरीब को 2 रोटी खिला दें तो देखिएगा उसकी चेहरे की मुस्कान और उसके मुँह से निकली आशीषें सुन के आप के दिल को एक बरगर खाने से ज्यादा संतोष मिलता है या नहीं।
कलयुग जीवन में भी कायम है इंसानियत-
इस कलयुगी जीवन में जहां भाई -भाई की मदद करने को तैयार नहीं पड़ोसी पड़ोसी के साथ बोलने तक को तैयार नहीं है। वहीं विदेश में बैठा वह भारतीय समुंदरों पार रहकर भी इंसानियत को जिंदा रखने में भरपूर योगदान दे रहा है । ऐसे लोग आज भी इंसानियत को प्राथमिकता देते हुए जीवन जी रहे हैं और दूसरों के लिए एक मिसाल बन रहे हैं। ऐसी ही एक भारतीय महिला उषा भी है जो घर-घर जाकर बुजुर्ग, गरीब परिवारों से मिलती है और उनकी सहायता करती है। हर संभव सहायता करती है और कहीं ना कहीं हमें भी ऐसे लोगों से प्रेरणा लेने की जरूरत है। जिससे समाज का हर वह शख्स जिसे मदद की जरूरत है । वो आत्महत्या करने जैसे कदम न उठाए।